आजन्म संगति की अपेक्षा प्रिये-
गुण--दोषों सहित स्वीकार्य
हुई हूँ--धन्य हुई मै ,
खींचा है आपके प्रेम ने मुझे
सींचा है आपने सपनो को मेरे
प्रेम की ये परिभाषा
आपने है सिखाया
प्रिये ! हमारा अस्तित्व इस
दुनिया में रहेंगे क़यामत तक
शपथ है मेरी मै न जाऊंगी
रह न पाऊँगी
देखे बिना आपके एक झलक
सात जन्मो से बंधी हूँ मै
आगे सात जन्मो तक
सात फेरे के बंधन है
मै न जाऊंगी
तोड़कर ये बंधन
प्राण न्योछावर है आप पर
आपसे ही सीखा है
प्रेम की परिभाषा
धन्य हुई मै ।।
प्रभावित करती रचना .
जवाब देंहटाएंसुन्दर समर्पण....सात्विक प्रेम....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
अनु
समर्पण भाव व्यक्त करती
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,प्यारी रचना...
:-)
वाह बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है कहानी सिक्कों की - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
समर्पण भाव लिये लाजबाब रचना,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST...: दोहे,,,,
चिर समर्पण का अजस्र प्रवाह
जवाब देंहटाएंनिःस्वार्थ प्रणय,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....!!
बहुत सुन्दर भाव संयोजन
जवाब देंहटाएंप्रेम और समर्पण के भाव लिए ... सातों जन्मों कों मुभाते हुवे लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंगहन भाव लिए बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंभावप्रवण कविता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव !
जवाब देंहटाएंबढ़िया अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंयह रचना कामयाब है !
prem se bhare sunder bhaav
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
..very beautifully penned Ana, I loved it:)
जवाब देंहटाएंbhut aschi rachna hai.
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