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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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इतना भरोसा कि चिंताएं मिट जाएँ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव संयोजन के साथ सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंअनु
Wah! bhaw purn rachna...prabhawshali
जवाब देंहटाएंpositive thinking poem
जवाब देंहटाएंwaah bahut khub
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