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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
इतना भरोसा कि चिंताएं मिट जाएँ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव संयोजन के साथ सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंअनु
Wah! bhaw purn rachna...prabhawshali
जवाब देंहटाएंpositive thinking poem
जवाब देंहटाएंwaah bahut khub
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