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मार्च 31, 2012

विचारों का बादल...

विचारों का बादल उमड़ते घुमड़ते आ ही जाते है
शब्द जाल के उधेड़ बुन में जकड़ ही जाते है
व्याकरण की चाशनी में डूब ही जाती है
वर्ण-छंद के लय ताल में पिरो दी जाती है

लेखनी की झुरमुटों से जब निकलता  है
विचार मात्र विचार ही नहीं वांग्मय बन जाता है
कृति ये ज्योत बनकर जगमगाता है
अपने प्रकाश से प्रकाशित कर सब पर छा जाता है

तिस पर उसे गर स्वर में बांधा तो गीत बनता है
सुर का जादू गर चले तो समां बंध जाता है
विचारों को बढ़ने के दो पग मिल जाते है
(इस तरह )सम्पूर्णता को प्राप्त कर वो झिलमिलाते है



13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढ़िया।

    आपको रामनवमी और मूर्खदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ----------------------------
    कल 02/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    ....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

    जवाब देंहटाएं
  3. विचारों के बादल शब्दों के रूप में बरस जाते हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया प्रस्तुति..............

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी प्रस्तुति -अब्र मेरे ज़रा थम थम के बरसना ,

    आजाये मेरा यार तो ज़म ज़म के बरसना .

    जवाब देंहटाएं
  6. लेखनी की झुरमुटों से जब निकलता है
    विचार मात्र विचार ही नहीं वांग्मय बन जाता है.

    लेखन के लिये बढ़िया रेसिपी. बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.

    जवाब देंहटाएं
  7. सुर का जादू गर चले तो समां बंध जाता है
    विचारों को बढ़ने के दो पग मिल जाते है
    shayad aisa hi hota hai

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत खूब ....शब्दों का साथ यूँ ही बना रहे .....आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. तिस पर उसे गर स्वर में बांधा तो गीत बनता है
    सुर का जादू गर चले तो समां बंध जाता है
    विचारों को बढ़ने के दो पग मिल जाते है..
    बहुत सुन्दर ..ऐसे फूल पिरोये जाएँ तो हार बन जाता है --सुन्दर अभिव्यक्ति ..
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

    जवाब देंहटाएं

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