मेरे रीतापन को लेकर एकाकी जीवन है मेरा जैसे बिना कुहक चिड़ियों की निस्तब्ध वन है सारा उठ जाती हूँ रातो को सुनकर अकस्मात्, ये ध्वनि है क्या अरे! ये तो जानी पहचानी सी रूदन है मेरा पक्की दीवारों से घिरी इन कमरों की गुंजन को मन की कच्ची दीवारें भी सुनता नहीं इस धड़कन को डायरी के पन्ने सारे भर गए तेरे यादों से नीदों से तो टूटा नाता जुड़ गया नाता तारों से चंद सवाल रह जाते मन में कब तक इस रीता मन को लेकर चलती रहूँ मै साथ दिन ज़िन्दगी के कम है जो |
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जनवरी 02, 2012
मेरे रीतापन....
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अना जी, विशेष भावों से एवं शब्दों से सुसज्जित एवं सार्थक रचना हेतु हार्दिक बधाई......
जवाब देंहटाएंये नव - वर्ष आप एवं आपके परिवार लिए
विशेष सुख - शांतिमय, हर्ष - आनंदमय,
सफलता - उन्नति - यश - कीर्तिमय और
विशेष स्नेह - प्रेम एवं सहयोगमय हो !!!!
.एक अतिसंवेदनशील रचना जो निशब्द कर देती है
जवाब देंहटाएंदस दिनों तक नेट से बाहर रहा! केवल साइबर कैफे में जाकर मेल चेक किये और एक-दो पुरानी रचनाओं को पोस्ट कर दिया। लेकिन आज से मैं पूरी तरह से अपने काम पर लौट आया हूँ!
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सुंदर भावभरी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंडायरी के पन्ने सारे
जवाब देंहटाएंभर गए तेरे यादों से
नीदों से तो टूटा नाता
जुड़ गया नाता तारों से
bahut sundar panktiyan.bahut achchi rachna.nav varsh ki shubhkamnayen.
चंद सवाल रह जाते मन में
जवाब देंहटाएंकब तक इस रीता मन को
लेकर चलती रहूँ मै साथ
दिन ज़िन्दगी के कम है जो....man ke bhaavo ko shabdo me utar diya aapne....
जिंदगी के खालीपन और दर्द को बखूबी शब्दों में उतार दिया है आपने ...
जवाब देंहटाएं"चंद सवाल रह जाते मन में
जवाब देंहटाएंकब तक इस रीता मन को
लेकर चलती रहूँ मै साथ
दिन ज़िन्दगी के कम है जो"
भावपूर्ण.....
शाद इसी का नाम ज़िंदगी है ...
जवाब देंहटाएंBahut khoob bhav
जवाब देंहटाएंपहली बात ऊपर का क्लौक - बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंदूसरी बात कविता के ऊपर दिया गया चित्र - लाजवाब है, कविता के भाव को खोलकर रख देता है।
और कविता -- मन के अहसास को गहरे से मन में उतार देता है।
dard-ae-dil bayan kiyaa hai aapne
जवाब देंहटाएंakelepan kaa ahsaas dilaayaa aapne