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दिसंबर 24, 2011

चाँद फिर....


चाँद फिर चुपके से निकला 
धीरे-धीरे बढती आभा 
फूल मधुवन में फैले खुशबू 
गीत कोई गए आ ssss

मन वीणा के तार बज उठे 
स्वर में  है जादू लहराया 
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण 
चहूँ ओर से क्या स्वर आया 

दो हृदयों का मिलन देखकर 
प्राण-श्वास का प्रणय देखकर 
अंतर्मन में आस जग उठी 
चाँद डूबा कब सूरज आया 
                
चिड़ियों की कलरव गूँज उठी 
कलियाँ भी फिर से महक उठी 
उषा के मृदु किरणों के संग 
नभ पर सूरज फिर उग आया 


11 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना।
    सुंदर अभिव्‍यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  2. मन वीणा के तार बज उठे
    स्वर में है जादू लहराया
    पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण
    चहूँ ओर से क्या स्वर आया ...
    चाँद के आने के साथ ही प्रेम का माहोल बन जाता है ... लाजवाब रचना है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. मन वीणा के तार बज उठे
    स्वर में है जादू लहराया
    पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण
    चहूँ ओर से क्या स्वर आया

    सुन्दर...

    जवाब देंहटाएं
  4. दो हृदयों का मिलन देखकर
    प्राण-श्वास का प्रणय देखकर
    अंतर्मन में आस जग उठी
    चाँद डूबा कब सूरज आया

    चिड़ियों की कलरव गूँज उठी

    ana ji kya khoob likha hai ap ne ... bahut sundar abhivykti ke liye abhar ... apne blog pr ak naya post apko padhane ke liye chhoda hai .

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहद खूबसूरत लेखनी ...शब्द रचना बेजोड ...आभार

    जवाब देंहटाएं

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