चाँद फिर चुपके से निकला धीरे-धीरे बढती आभा फूल मधुवन में फैले खुशबू गीत कोई गए आ ssss मन वीणा के तार बज उठे स्वर में है जादू लहराया पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण चहूँ ओर से क्या स्वर आया दो हृदयों का मिलन देखकर प्राण-श्वास का प्रणय देखकर अंतर्मन में आस जग उठी चाँद डूबा कब सूरज आया चिड़ियों की कलरव गूँज उठी कलियाँ भी फिर से महक उठी उषा के मृदु किरणों के संग नभ पर सूरज फिर उग आया |
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दिसंबर 24, 2011
चाँद फिर....
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
वाह जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंaur silsilaa nirantar chaltaa rahaa
जवाब देंहटाएंbadhiyaa
बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति।
मन वीणा के तार बज उठे
जवाब देंहटाएंस्वर में है जादू लहराया
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण
चहूँ ओर से क्या स्वर आया ...
चाँद के आने के साथ ही प्रेम का माहोल बन जाता है ... लाजवाब रचना है ...
बहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति /
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंमन वीणा के तार बज उठे
जवाब देंहटाएंस्वर में है जादू लहराया
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण
चहूँ ओर से क्या स्वर आया
सुन्दर...
दो हृदयों का मिलन देखकर
जवाब देंहटाएंप्राण-श्वास का प्रणय देखकर
अंतर्मन में आस जग उठी
चाँद डूबा कब सूरज आया
चिड़ियों की कलरव गूँज उठी
ana ji kya khoob likha hai ap ne ... bahut sundar abhivykti ke liye abhar ... apne blog pr ak naya post apko padhane ke liye chhoda hai .
बेहद खूबसूरत लेखनी ...शब्द रचना बेजोड ...आभार
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