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नवंबर 10, 2011

जलधि विशाल

जलधि विशाल तरंगित ऊर्मि
नीलांचल नाद झंकृत धरणी 
कल-कल झिन्झिन झंकृत सरिता 
पारावार विहारिणी गंगा 


तरल तरंगिनी त्रिभुवन तारिनी 
शंकर जटा  विराजे वाहिनी 
शुभ्रोज्ज्वल चल धवल प्रवाहिनी 
मुनिवर कन्या हे ! भीष्म जननी 




पतित उद्धारिणी जाह्नवी गंगे 
त्रिभुवन तारिणी तरल तरंगे 
महिमा तव गाये धरनीचर 
मोक्ष प्राप्त हो जाए स्नान कर 


हरिद्वार  काशी पुनीत कर 
बहे निरंतर कल-कल छल-छल 
सागर संगम पावन पयोधि 
गोमुख उत्स स्थान हे वारिधि 


सर्वदा कल्याणी द्रवमयी 
मोक्षदायिनी जीवनदात्री 
बारम्बार नमन हे जाह्नवी 
वरदहस्त रखना करुणामयी 

16 टिप्‍पणियां:

  1. सुघड़ शब्दों में कलकल बहती कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. Maa Gange ka sundar manoram jhalkiyan padhkar man anandit ho chala..
    sundar prastuti hetu abhar!

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर रचना।
    जय हो गंगा मैय्या की।

    जवाब देंहटाएं
  4. भक्तिमय कृति !
    बेहद अच्छी रचना,जय माँ गंगे !



    अपने विचारों से अवगत कराएँ !
    अच्छा ठीक है -2

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर तरंगित करती रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर प्रार्थना... अच्छी रचना...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी पोस्ट सोमबार १४/११/११ को ब्लोगर्स मीट वीकली (१७)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह हिंदी भाषा की सेवा अपनी रचनाओं के द्वारा करते रहें यही कामना है /आपका "ब्लोगर्स मीट वीकली (१७) के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /आभार /

    जवाब देंहटाएं
  8. सुबह सुबह आपकी प्रस्तुति से मन में पवित्र भाव उदय हो गए है.
    पढकर ऐसा लगता है कि दिव्य संगीत झंकृत हो रहा हो कानों में.

    बहुत बहुत आभार.

    जवाब देंहटाएं

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