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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
बहुत ही खूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह ..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !!
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर , सरल रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंGyan Darpan
Matrimonial Service
aapkee kavitaa mere man ko bahlaaye
जवाब देंहटाएंकोयल की कूक जैसी ही बहुत मधुर एवं सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग भी बहुत ख़ूबसूरत और आकर्षक लगा । अभिव्यक्ति भी मन को छू गई । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद . ।
जवाब देंहटाएंगूंजे कोयल की कूक से
जवाब देंहटाएंजंगल में मीठी तान
पवन चले मंद मंद
गाये दादुर गान ,sundar rachna....
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गीत....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई....
sundar prastuti...
जवाब देंहटाएं***punam***
bas yun...hi...
tumhare liye...
खूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन!
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जवाब देंहटाएंदिनांक 13/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
ऎसा क्यूँ हो जाता है......हलचल का रविवारीय विशेषांक.....रचनाकार...समीर लाल 'समीर' जी
बहुत सुंदर
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