तुम्हारे आने से सुबह की शुरुआत हुई दिन भर लीगों से मेलजोल मुलाक़ात हुई मेरे फ़रियाद को सुन रब ने ये कह दिया जिससे दिन की शुरुआत हुई उसे इल्म ही तो न हुई |
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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तू है वक़्त गुज़रा हुआ मुरझाया फूल किताबों में रखा तुझे न याद करूँ एक पल से ज्यादा कि दिल में तू नहीं अब कोई और है तुम से खिला क...
वाह ..दीपावली की शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएं.ये जीवन भी बड़ा ही रोचक एहसास से हमें भीतर से आंदोलित कर देता है । किसी का आना हो या जाना, इसे इससे फर्क नही पड़ता है लेकिन फर्क की लकीर को मिटा कर ङमें आत्मीय क्षणों से साक्षात्कार करा जाता है । आपकी प्स्तुति अच्छी लगी । धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर....
आपको और आपके परिवार को दीप पर्व की शु भकामनाएं....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर... शुभ दिवाली...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंदीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
दीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
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