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अक्टूबर 21, 2011

नदी के पार

नदी के पार कोई गाता गीत 
उस स्वर में बसा है मन का मीत 
नदी की लहरों खेतों से उठकर 
आती ध्वनि मन लेता जीत 

होगा इस पार जो लेगा सुन 
इस देहाती गानों का उधेड़-बुन 
इन एकाकी गानों को सुनकर 
मरकर भी जी लेगा पुन-पुन 

भानु-चन्द्र का है आलिंगन 
प्रकाश से भरा है लालिमांगन 
इन गीतों ने छेड़ा है फिर से 
राग-अनुराग का आलापन 

16 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत प्रस्तुति |

    त्योहारों की नई श्रृंखला |
    मस्ती हो खुब दीप जलें |
    धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
    दीप जलाने चले चलें ||

    बहुत बहुत बधाई ||

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  2. होगा इस पार जो लेगा सुन
    इस देहाती गानों का उधेड़-बुन
    इन एकाकी गानों को सुनकर
    मरकर भी जी लेगा पुन-पुन
    .... गहरी अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  3. गहरे भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  4. गज़ब की प्रस्तुति…………………शानदार रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर प्रस्‍तुति .. शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  6. नदी के पार कोई गाता गीत
    उस स्वर में बसा है मन का मीत
    नदी की लहरों खेतों से उठकर
    आती ध्वनि मन लेता जीत...बेहतरीन प्रस्तुती....

    जवाब देंहटाएं
  7. इन गीतों ने छेड़ा है फिर से
    राग-अनुराग का आलापन
    man chaahtaa aise geet nirantar sunte rahein
    sundar rachnaa

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर कविता, सुंदर भाव।
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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