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अक्टूबर 17, 2011

चलो न चले


चलो न चले 
पकडे डूबते सूरज को 
जाने न दे उसे 
 रोक ले क्षितिज में

चलो न चले 
बहते पवन के साथ 
चलते चले हम भी 
कहीं कोई पुरवाई चले 

चलो न चले 
चाँद की धरातल पर 
सूत कातती है वहाँ 
एक अनजानी सी बुढिया

रोक ले उसे 
मत कातो ये धागे 
ये धागे 
रिश्ते नहीं बुनते 

चलो न चले 
उस जहां में जहां 
न सूरज डूबे 
न ही कोई रिश्ता टूटे 

18 टिप्‍पणियां:

  1. चलो न चले
    उस जहां में जहां
    न सूरज डूबे
    न ही कोई रिश्ते टूटे
    hain taiyaar hum

    जवाब देंहटाएं
  2. चलो न चले
    उस जहां में जहां
    न सूरज डूबे
    न ही कोई रिश्ते टूटे...bhaut khub kaha aapne....

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन कविता।

    कल 18/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. ख़ूबसूरत प्रस्तुति के लिए बधाई .


    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें /

    जवाब देंहटाएं
  5. रोक ले उसे
    मत कातो ये धागे
    ये धागे
    रिश्ते नहीं बुनते
    सुन्दर!

    जवाब देंहटाएं
  6. chalo naa chalo sundar khyaal kavitaa ke jariye baahar nikaaalte raho
    bahut sundar panktiyaan

    जवाब देंहटाएं
  7. चलो न चले
    उस जहां में जहां
    न सूरज डूबे
    न ही कोई रिश्ते टूटे ्…………बहुत सुन्दर चाहत्।

    जवाब देंहटाएं
  8. खूबसूरत आह्वान .. प्रेरक भी

    जवाब देंहटाएं
  9. भाव पूर्ण प्रेरक आह्वाहन ....शुभ कामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  10. aap sabho bloggero ko bahut bahut dhanyavad ...aap ne samay nikalkar mere post ko nakewal padha balki comment se nawaza bhi....bahut bahut dhanyavad

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर और प्रेरक अभिव्यक्ति ... मेरे ब्लांग में आने के लिए आभार...

    जवाब देंहटाएं
  12. chalo n chalen
    vahan par..
    dhartee aur aakash
    milen jahan par !!
    khoobsoorat sa khwaab...!!

    जवाब देंहटाएं

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