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अक्टूबर 07, 2011

तनहा ज़िन्दगी




तनहा  ज़िन्दगी में गुजर बसर करते है 
काफिले के साथ भी तनहा-तनहा चलते है 


दिन में भीड़ करती है मुझे परेशान 
रात को तन्हाई में भी सोया नहीं करते है 


परछाईं को देख मैं हूँ इस कदर हैरां
गुजरी उम्र ...हम अकेले चला करते है 


रात का सन्नाटा आवाज़ देती है मुझे 
जाऊं कैसे हम तो तन्हाई में डूबे रहते है 


15 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई .

    मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....

    जवाब देंहटाएं
  4. परछाईं को देख मैं हूँ इस कदर हैरां
    गुजरी उम्र ...हम अकेले चला करते है

    वाह! बहुत सुन्दर रचना....
    सादर बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  5. रात का सन्नाटा आवाज देती है मुझे
    जाऊं कैसे हम तो तन्हाई में डूबे रहते है

    सुंदर भावपूर्ण ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  6. परछाईं को देख मैं हूँ इस कदर हैरां
    गुजरी उम्र ...हम अकेले चला करते है

    ........गहरे अहसास की कविता

    जवाब देंहटाएं

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