रास्तों पर चौराहों पर ये फटे पुराने चीथड़ों पर ज़िन्दगी गुज़रती है जिनकी ज़रा सुध ले लो उनकी जहां खाने के पड़े लाले है जहां पैरों पे पड़े छाले हैं जिनके किस्मत पर पड़े ताले है ज़रा बन जाओ उनकी कुंजी मंदिर मस्जिद जो तोड़े हैं गावों शहरों में बम फोड़े हैं प्राणों पर संकट जो डाले हैं ज़रा ले लो खबर उनकी |
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सितंबर 06, 2011
गुज़ारिश
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
उम्दा चिन्तन....रचना के माध्यम से.
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण भावनाए बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंउनकी भी लें खबर ...
जवाब देंहटाएंसही!
मंदिर मस्जिद जो तोड़े हैं
जवाब देंहटाएंगावों शहरों में बम फोड़े हैं
प्राणों पर संकट जो डाले हैं
ज़रा ले लो खबर उनकी... सही कहा आपने....
भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-631,चर्चाकार --- दिलबाग विर्क