आज न गुनगुनाओ कोई प्रेम गीत न करो दिल-विल की बातें सुन लो तुम जन-जन की पुकार धरती पुकारे फैलाकर बांहे आज कोई रूदन न हो निष्फल तोड़ो मन में बसे स्वार्थ का बंधन मन की खिड़की खोलो इतना सुनाई दे जग की व्यथा औ' क्रंदन धूलि धरती का बनाकर चन्दन लगा लो माथे पर हे वीर नंदन दीया तक न जल पाया जिनके घरो में वर्जित है अन्न से शिशु जिन घरों में सावन बीता पर मिला नहीं जिसे आश्रय दिन-रात कटे फुटपात पर - दारूण भय रे मन उनमे भी तुम ही हो बसे अपने कन्धों पर उठालो भार उनके आज न गुनगुनाओ कोई प्रेम गीत न करो दिल-विल की बातें |
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अगस्त 28, 2011
आज न गुनगुनाओ ....
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
मन को छू लेने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग्स पर भी आपका स्वागत है -
http://ghazalyatra.blogspot.com/
http://varshasingh1.blogspot.com/
गहन अनुभूतियों को शब्दों में सहजता से उतारा है अनु जी आपने बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाववान रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! बेहतरीन प्रस्तुती !
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को ईद और गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
मन को छू लेने वाली सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...
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