ये काली घटा ने देखो क्या रंग दिखाया नाच उठा मन मेरा हृदय ने गीत गाया सूखी नदियाँ प्लावित हुई जीवन लहलहाया दादुर,कोयल,तोता,मैना ने गीत गुनगुनाया तप्त धरती शीतल हुई बूंदे टपटपाया धरती ने आसमान को छोड़ बादल को गले लगाया रवि ज्योति मंद पड़ा मेघ गड़गड़ाया नृत्य मयूर का देख ये मन मुस्कराया |
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जुलाई 19, 2011
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ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम...
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तू है वक़्त गुज़रा हुआ मुरझाया फूल किताबों में रखा तुझे न याद करूँ एक पल से ज्यादा कि दिल में तू नहीं अब कोई और है तुम से खिला क...
kali ghata aane se nadiya bhar aayi
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत पंक्तिया...
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत पंक्तिया...
जवाब देंहटाएंमन को भिगोती हुई पंक्तियां,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
baarish ki boodon ka aur kya kehna..... jab girte hai .....to sab kuch badal jata hai....
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