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जल रही है धरती
जल रहा है गगन
आग उगल रही है
ज़मीं और पवन
झुलसाती है धूप
तरसाती है पानी
ये गरमी भी ना जाने
लेंगी कितनी जानें
लू के थपेड़ों ने
बरपा रखी है आग
सूरज की किरणे भी
जला रही है गात
दिन गिनते पल बीते
आस वर्षा-आगमन की
समय है नेह बरसने का
औ बुझ जाए तपन धरा की
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ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम...
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तू है वक़्त गुज़रा हुआ मुरझाया फूल किताबों में रखा तुझे न याद करूँ एक पल से ज्यादा कि दिल में तू नहीं अब कोई और है तुम से खिला क...
इधर भी परेशानी थी
जवाब देंहटाएंपर सुखांत --
नेह-निमंत्रण
परसे* नैना | *परोसना
जन्म-जन्म के
करषे* नैना | | *आकर्षित
प्रियतम को अब
तरसे नैना |
कितने लम्बे-
अरसे नैना ||
हौले - हौले
बरसे नैना |
जाते अब तो
मर से नैना ||
अब आये क्यूँ
घर से नैना |
जरा जोर से
हरसे नैना ||
बहुत बढ़िया और शानदार रचना ! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंटिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
फिर से भर आये बदरा फिर बरसेगा पानी
जवाब देंहटाएंआ गयी फिर रुत वो सावन की फिर हो गयी कोई आपने सजन की दीवानी....
सुंदर है बहन जी ....एक परिपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी पधारे
neh kee baarish ... to phir kaisi jalan
जवाब देंहटाएंachchi rachna..bhavpranav.....sadhuwad..
जवाब देंहटाएंbahut khoob likha hai zi
जवाब देंहटाएं______________________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
सच है अब तो बरस ही जाना चाहिए इस बारिश को ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कविता ....आभार
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंसामयिक सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत भावभीनी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएं...और बहुत ही गहरे भाव !
bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंsundar prastuti.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
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