प्रिये अब तुम दूर न जाना
आँखें पथ है निहार रही
वो दिन न रहा वो रात न रही
उलझी कब से है लटें सारी
सुलझाओ आकर ओ सजना
सच सारे तो तुम साथ लिए
चल दिये ,मैं मिथ्या एक भरम
तुम हो यथार्थ- मैं स्वप्न लिए
तथ्यों से परे हूँ खड़ी चिर-दिन
यूँ जाना कुछ खल सा गया
तुम से जीवन का सार प्रिये
वो दिन भी रहा वो रात भी रही
बस यादों का संसार लिए
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