शाख से जुड़े कच्चे लम्हों को पक जाने दो परिंदों का उड़ना ही था की पर काट दिए चिंगारी को ज़रा सा उड़ने की खुमारी दे दो लम्हे गिरेंगे शाख से जब पक जायेंगे ये कच्चे पल संभालना है मुझे तारीखों में बसे पके हुए कल फिर ये कैसा ठहराव है इस वीरान जिंदगानी में इन प्यार के कतरों को दरियाई गहराई दे दो |
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नवंबर 24, 2011
रिश्तो को गहराने दो
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
फिर ये कैसा ठहराव है इस वीरान जिंदगानी में
जवाब देंहटाएंइन प्यार के कतरों को दरियाई गहराई दे दो
गजब की सोंच क्या बात है बधाई ......
फिर ये कैसा ठहराव है इस वीरान जिंदगानी में
जवाब देंहटाएंइन प्यार के कतरों को दरियाई गहराई दे दो.... बेहतरीन शब्द रचना.....
धीरे धीरे रूहानी रिश्तो को गहराने दो
जवाब देंहटाएंशाख से जुड़े कच्चे लम्हों को पक जाने दो
बेहतरीन रचना
गहरे अहसास....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
rishte gahre huye binaa
जवाब देंहटाएंruhaani nahee hote
sab rishton se upar hote
लम्हे गिरेंगे शाख से जब पक जायेंगे ये कच्चे पल
जवाब देंहटाएंसंभालना है मुझे तारीखों में बसे पके हुए कल
सुन्दर भाव.......
बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंफिर ये कैसा ठहराव है इस वीरान जिंदगानी में
जवाब देंहटाएंइन प्यार के कतरों को दरियाई गहराई दे दो
बहुत सुन्दर