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अगस्त 24, 2011

घोर घनघटा............

डूबा दिन ढल गयी शाम ,रोक न पाऊँ मैं
आकाश सज गए तारों से ,कदम बढाऊँ मै

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घोर घनघटा नहीं चांदनी , न रोशनी तारों की
उतावला मन बिखरा पल , उठे मन में विचारें भी

न हो ये शाम रात बदनाम , दिल बरबस तनहा
मन बेचैन...सगरी रैन कब होवे सुबहा

जाने क्या दिन का राज़ , उत्फुल्ल है मन
रोशन है जग सारा ,हुआ मन रोशन



11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.

    जवाब देंहटाएं
  2. खूबसूरत मनोभावों की उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर भावों से लिखी शानदार अभिब्यक्ति /बधाई आपको /



    please visit my blog .thanks.
    www.prernaargal.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खुबसूरत प्रस्तुति ....

    जवाब देंहटाएं

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