स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य पर प्रस्तुत है मेरी ये कविता हे कवि बजाओ मन वीणा छेड़ो तुम जीवन के तान शब्द शिखर पर आसीन हो तुम छेड़ो तुम जन-जन का गान गीत छेड़ो स्वतन्त्रता के झूठ छल-कपट का हो अवसान सत्य अहिंसा ईमान का जग में करना है उत्थान मौन रह गए गर तुम कविवर छेड़ेगा कौन सत्य अभियान कलम को हथियार बनाकर करो जन-जन का आहवान उठो -जागो लड़ो-मरो करो देश के लिए बलिदान कवि तुम चुप न रहो -कह दो सत्य राह हो सबका ध्यान |
---|
फ़ॉलोअर
अगस्त 14, 2011
हे कवि बजाओ...
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
-
तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
-
कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
उठो -जागो लड़ो-मरो
जवाब देंहटाएंकरो देश के लिए बलिदान
कवि तुम चुप न रहो -कह दो
सत्य राह हो सबका ध्यान
good lines,
सुन्दर भावों से आह्वान
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आह्वान्।
जवाब देंहटाएंकलम को हथियार बनाकर
जवाब देंहटाएंकरो जन-जन का आहवान
सच कहा.... सुन्दर लेखन...
सादर..
हे कवि तुम चुप न रहो .. बहुत खूब प्रस्तुति .. आपके इस सुंदर सी प्रस्तुति से हमारी वार्ता भी समृद्ध हुई है !!
जवाब देंहटाएंउठो -जागो लड़ो-मरो
जवाब देंहटाएंकरो देश के लिए बलिदान
कवि तुम चुप न रहो -कह दो
सत्य राह हो सबका ध्यान
सही समय पर सही सन्देश देती बेहतरीन रचना. बधाई.
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें.
bahut hi sundar likha hai kavi ke marm ko aur samjh skta hai....
जवाब देंहटाएं