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जून 16, 2011

मकड़ी और मक्खी


       
             (मकडी)
धागा  बुना   अंगना में मैंने
जाल बुना कल रात मैंने 
         जाला झाड साफ़ किया है वास *
आओ ना मक्खी मेरे घर
आराम मिलेगा बैठोगे जब 
         फर्श बिछाया देखो एकदम खास *
         (मक्खी)
छोड़ छोड़ तू और मत कहना 
बातों से तेरा मन गले ना 
         काम तुम्हारा क्या है मैं सब जानूं* 
फंस गया गर जाल के अन्दर 
कभी सुना है वो लौटा फिर 
         बाप रे ! वहाँ घुसने की बात ना मानूं *
           (मकड़ी)
हवादार है जाल का झूला 
चारों ओर  खिडकी है खुला 
          नींद आये खूब आँखे हो जाए बंद *
आओ ना यहाँ हाथ पाँव धोकर 
सो जाओ अपने पर मोड़कर 
          भीं-भीं-भीं उड़ना हो जाए बंद *
            (मक्खी)
ना चाहूँ मैं कोई झूला 
बातों में आकर गर स्वयं को भूला 
          जानूं है प्राण का बड़ा ख़तरा *
तेरे घर नींद गर आयी 
नींद से ना कोई जग पाए 
         सर्वनाशा है वो नींद का कतरा *
             (मकड़ी)
वृथा तू क्यों विचारे इतना 
इस कमरे में आकर देख ना 
         खान-पान से भरा है ये घरबार *
आ फ़टाफ़ट डाल ले मूंह में 
नाच-गाकर रह इस घर में 
         चिंता छोड़ रह जाओ बादशाह  की तरह *
              (मक्खी)
लालच बुरी बला है जानूं 
लोभी नहीं हूँ ,पर तुझे मैं जानूं 
          झूठा लालच मुझे मत दिखा रे  *
करें क्या वो खाना खाकर 
उस भोजन को दूर से नमस्कार 
          मुझे यहाँ भोजन नही करना रे *
              (मकडी)
तेरा ये सुन्दर काला बदन 
रूप तुम्हारा सुन्दर सघन 
          सर पर मुकुट आश्चर्य से निहारे  *
नैनों में हजार माणिक जले 
इस इन्द्रधनुष पंख तले 
          छे पाँव से आओ ना धीरे-धीरे *
            (मक्खी)
मन मेरा नाचे स्फूर्ति से 
सोंचू जाऊं एक बार धीरे से 
            गया-गया-गया मैं बाप रे!ये क्या पहेली *
ओ भाई तुम मुझे माफ़ करना 
जाल बुना तुमने मुझे नहीं फसना 
          फंस जाऊं गर काम नआये कोई सहेली *
              (उपसंहार)
दुष्टों की बातें होती चाशनी में डुबोया 
आओ गर बातों में समझो जाल में फंसाया 
          दशा तुम्हारा होगा ऐसा ही सुन लो *
बातों में आकर ही लोग मर जाए 
मकड़जीवी धीरे से समाये 
           दूर से करो प्रणाम और फिर हट लो * 
कवि सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का अनुवाद 

          

6 टिप्‍पणियां:

  1. दुष्टों की बातें होती चाशनी में डुबोया
    आओ गर बातों में समझो जाल में फंसाया
    दशा तुम्हारा होगा ऐसा ही सुन लो *
    बातों में आकर ही लोग मर जाए
    मकड़जीवी धीरे से समाये
    दूर से करो प्रणाम और फिर हट लो * bahut badhiyaa

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा लिखा है बहुत बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत रचना .. वार्तालाप शैली

    जवाब देंहटाएं
  4. मकड़जीवी से,
    दूर से करो प्रणाम
    और फिर हट लो |

    बहुत सुन्दर ||

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी प्रेरणा से प्रस्तुत हैं पंक्तियाँ ---http://dcgpthravikar.blogspot.com/

    कांगू मच्छर और भांजू मक्खी : आरोप-प्रत्यारोप

    मच्छरों ने मक्खियों को खुब लताड़ा |
    मक्खियाँ क्या छोड़ देतीं, बहुत झाड़ा ||

    चूस करके खून तुम शेखी बघारो |
    गुन-गुनाकर गीत, सोते जान मारो ||
    इस तरह से दिग्विजय घंटा करोगे |
    सोये हुए इंसान पर टंटा करोगे ||
    मर्म-अंगों पर जहर के डंक मारो |
    चढ़ चला ज्वर जोरका मष्तिष्क फाड़ो ||
    पहले सुबह या शाम ही काटा किये |
    अब रात भर डेंगू - दगा बांटा किये ||
    रक्त-मोचित सब चकत्ते नोचते हैं |
    नष्ट करने के तरीके खोजते हैं ||
    तालियों के बीच तू जिस दिन फँसेगा |
    जिन्दगी से हाथ धो, किसपर हँसेगा ||
    नीम के मारक धुंवे से न बचेगा ---
    राम का मैदान हो या सुअर बाड़ा ||
    मच्छरों ने मक्खियों को खुब लताड़ा |
    मक्खियाँ क्या छोड़ देतीं, खूब झाड़ा ||

    मच्छरों ने मक्खियों की पोल खोली |
    मार कर लाखों-करोड़ों आज बोली ||
    गन्दगी देखी नहीं कि बैठ जाती -
    और दुनिया की सड़ी हर चीज खाती ||
    "मारते" तुझको निठल्ले बैठ खाली -
    "बैठने से नाक पर" जाती हकाली ||
    कालरा सी तू भयंकर महामारी |
    अड़ा करके टांग करती भूल भारी ||

    मधु की मक्खी आ गईं रोकी लड़ाई |
    बात रानी ने उन्हें अपनी बताई ---
    फूल-पौधों से बटोरूँ मधुर मिष्टी |
    मजे लेकर खा सके सम्पूर्ण सृष्टि ||
    स्वास्थ्यवर्धक मै उन्हें माहौल देती |
    किन्तु बदले में नहीं कुछ और लेती ||
    किन्तु दोनों शत्रु मिलकर साथ बोले--
    मत पढ़ा उपकार का हमको पहाड़ा ||
    मच्छरों ने मक्खियों को खुब लताड़ा |
    मक्खियाँ क्या छोड़ देतीं, खूब झाड़ा ||

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