तेरे दामन में आकर साँसें क्यों थम सी गयी तुम्हे याद-याद कर नींद भी क्यों न आये मुझे आधी रात तलक उनींदी रातें गुजारूं मै इंतज़ार में कब तक मेरी हस्ती मिट जायेगी तुम्हे याद करते बेजान सी ज़िन्दगी है मेरी सपनो में तुम्हे देखते यूं ही समय कट जायेगी यादों के पन्ने पलटते अक्स धुंधली पड़ जायेगी रिश्तों के सिलवटों को झटकते बस कहा दो इतना कि तुम अब भी हो मेरे मन के दरख्तों में बसे है मेरे ही चेहरे तुम्हे छूकर जाती है जो हवा मुझसे होकर उन हवाओं में अब भी तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा |
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मई 28, 2011
कदम क्यों रुक
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तुम्हे छूकर जाती है
जवाब देंहटाएंजो हवा मुझसे होकर
उन हवाओं में अब भी
तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंतुम्हे छूकर जाती है
जवाब देंहटाएंजो हवा मुझसे होकर
उन हवाओं में अब भी
तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
....yun hi to pyar ko bhulana aasan nahi!
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबस कहा दो इतना कि
जवाब देंहटाएंतुम अब भी हो मेरे
मन के दरख्तों में बसे है
मेरे ही चेहरे
bhawnaaon ka ufaan hai
बस कहा दो इतना कि
जवाब देंहटाएंतुम अब भी हो मेरे
मन के दरख्तों में बसे है
मेरे ही चेहरे
bhawnaaon ka ufaan hai
इसी को तो प्यार कहते है।
जवाब देंहटाएंbhut hi khubsurat bhavnaaye aur ehsaas hai...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंतुम्हे छूकर जाती है
जवाब देंहटाएंजो हवा मुझसे होकर
उन हवाओं में अब भी
तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
beautifully written.
वाह! यह तो बहुत कलात्मक ढंग से सजा हुआ ब्लॉग है. पोस्ट भी दिलचस्प..
जवाब देंहटाएं---देवेंद्र गौतम
अछा काव्य है,,,
जवाब देंहटाएंमन में उतर जाने वाला
बधाई .
तुम्हे छूकर जाती है
जवाब देंहटाएंजो हवा मुझसे होकर
उन हवाओं में अब भी
तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
बेहतर रचना
आपको पढ़कर एक गीत का मुखड़ा याद आया-
मेरे रीते अधरों पर फिर क्यों लिख दी तरुणाई
हवा देह बन गई जो मुझतक तुमको छूकर आई।
तुम्हे छूकर जाती है
जवाब देंहटाएंजो हवा मुझसे होकर
उन हवाओं में अब भी
तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
सुंदर रचना प्रेम को शब्द देती...