मन कोयला बन जल रख हुई धूआं उठा जब इस दिल से नाम तेरा ही लिखा फिर भी हवा में, बड़े जतन से तेरी याद मन के कोने से रह-रह कर दिल को भर जाए जिन आँखों में बसते थे तुम उन आँखों को रुला जाए जाने क्यों दिल की बस्ती में है आग लगी ,दिल जाने ना, पूछ न हाल इस दिलजले का जलता जाए बुझ पाए ना |
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम...
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जिन आँखों में बसते थे तुम
जवाब देंहटाएंउन आँखों को रुला जाए
बहुत अच्छी लगी यह पंक्तियाँ.
सादर
sunder kavita ana jee.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी क्तियाँ.
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाव्यक्ति बधाई
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाकई अद्भुत है अच्छी रचना है ...............
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