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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम...
ब्लॉग आर्काइव
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सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंक्या आपने अपने ब्लॉग में "LinkWithin" विजेट लगाया ?
Sunder rachna ...
जवाब देंहटाएंVery intense expression of feelings. Loved the lines and the opening lines of Harivanshrai Bachchan too :)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाये
आपकी सुन्दर प्रस्तुति का जवाब
जवाब देंहटाएंप्रेम में
जीने वालों की
तड़प कभी कम
नहीं होती
आग दिल की कभी
ना बुझती
प्रेम को खुदा मानने
वालों की इबादत
बिना प्रेम अधूरी रहती
किश्ती को साहिल
मिल भी जाए
तो भी नींद निरंतर
कहाँ आती
सुबह-ओ-शाम
एक ही धुन सवार
रहती
प्रेम की ख्वाइश में
ज़िन्दगी ख़त्म
होती
27-03-03
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
523—193-03-11
वाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआना जी बेहतरीन शब्दांकन, संवेदना से भरी रचना शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबारिश की बूंदे भी
जवाब देंहटाएंइस मन को न भर पाया
ये प्रेम की तड़पन है
न ये जल पाया न बुझ पाया
खुबसुरत नज्म। बेहतरीन एहसास। आभार।
nice
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति....प्रेम-अग्न की तड़प को बखूबी शब्दों में उकेरा है आपने
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