तारा टूटा है दिल तो नही
चहरे पर छाई ये उदासी क्यों
इनकी तो है बरात अपनी
तुम पर छाई ये विरानी क्यों
न चमक अपनी इन तारों की
न रोशनी की राह दिखा सके
दूर टिमटिमाती इन तारों से
तुम अपना मन बहलाती क्यों
कहते है ये टूटते तारे
मुराद पूरी करता जाय
पर नामुराद मन को तेरी
टूटते हुए छलता जाए क्यों
मत देखो इन नक्षत्रों को
इसने सबको है भरमाया
गर देखना ही है देखो उसे
जो अटल अडिग वो है 'ध्रुवतारा'
प्रेरणादायी।
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंजबरदस्त लिखा आपने..सार्थक सन्देश भी..बधाई.
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'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
badiya.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंसही है, तारे भरमाते ही हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
के बारे में महान पोस्ट "'ध्रुवतारा'"
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