कश्ती दरिया में इतराए ये समझकर
दरिया तो अपनी है इठलाऊं इधर-उधर
किनारा तो है ही अपना ,ठहरने के लिए
दम ले लूंगा मै भटकूँ राह गर
पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
किनारों को डुबो देता है सैलाब में
कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
ना दरिया अपनी न किनारा अपना
e sakhi radhike1.m... |
अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव पूर्ण कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंaap bhi bahut achha likhti hain , badhai sweekarein. aise hi utshah badate rahiye. sukriya.
जवाब देंहटाएंबड़े अच्छे अर्थ हैं आपकी रचना के। आभार।
जवाब देंहटाएंकश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
जवाब देंहटाएंना दरिया अपनी न किनारा अपना
waah bahut khoob kahi ,sundar .
कश्ती को ये बात .....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पंक्तियाँ