(1)
चाँद खिला पर रौशनी नही आयी
रात बीती पर दिन न चढ़ा
अर्श से फर्श तक के सफ़र में
कमबख्त रौशनी तबाह हो गया
(2)
दिल की हालत कुछ यूं बयान हुई
कुछ इधर गिरा कुछ उधर गिरा
राह-ए-उल्फत का ये नजराना है जालिम
न वो तुझे मिला न वो मुझे मिला
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम...
ब्लॉग आर्काइव
widgets.amung.us






























कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता।
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएँ .. बहुत प्यारी रचना है
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