सूर्य-तारा से भरा हुआ असमान
ये विश्व जिसमे भरा है प्राण
इन सबके साथ मैंने भी पाया है अपना स्थान
आश्चर्य से पुलकित हो गया प्राण
इस सीमाहीन प्राणों के तरंगों पर
भुवन झूमता है जिस ज्वार-भाटा पर
रगों में बह रही रक्त धारा में
प्रतीत होता है अपनापन
वन के राह पर जाते हुए
जिन घासों पर कदम रखा
फूलों के खुशबुओं से चमक उठा मन
मन हुआ है मतवारा
फैला चारों ओर आनंद-गान
विस्मय से जागृत हुआ ये प्राण
आँख और कान को धरती पर बिछाया
धरती के सीने में अपने प्राण को उडेला
"जाना " से "अनजाना" का संधान मिला
विस्मय से जागृत हुआ ये प्राण
फ़ॉलोअर
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
-
तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
-
तू है वक़्त गुज़रा हुआ मुरझाया फूल किताबों में रखा तुझे न याद करूँ एक पल से ज्यादा कि दिल में तू नहीं अब कोई और है तुम से खिला क...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें