मेरी धड़कनों से वो ज़िंदा ... जो हुई
ज़िंदा हुई क्या मुझ पे ही वो बरस पड़ी!!
ज़िंदा हुई क्या मुझ पे ही वो बरस पड़ी!!
देख लिया इस शहर को जो करीब से
बोल दिया असलियत तो भीड़ उबल पड़ी !!
बोल दिया असलियत तो भीड़ उबल पड़ी !!
सम्भाला ही था आईने को सौ जतन से
काफ़िये में तंग हुई उलझन में हूँ पड़ी !!
काफ़िये में तंग हुई उलझन में हूँ पड़ी !!
ख़ुदाया तूने मुझको जो काबिल न बनाया
कर आसाँ फ़िलवक्त इम्तिहान की घड़ी !!
कर आसाँ फ़िलवक्त इम्तिहान की घड़ी !!
गिर पड़ा मैं अपने गुनाहों के बोझ से
मैं नशे में हूँ ये वहम खामखाँ पड़ी !!
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