ये जो आंधी है चली ,सड़क -सड़क गली गली चुनाव पर्व है जो ये ,चेहरे लगे भली भली कर्म उनके जांच लो, मंसूबे क्या है जान लो सोचे हित जो जन की उसको वोट देना ठान लो लालच में अब न आयेगे ,बटन उसीपर दबायेंगे सुराज लाये पांच बरस,अब न हम पछतायेंगे डगर है ये बहुत कठिन ,चुनाव करना भी कठिन चुने जिसे हम अबकी बार,होवे न उससे शर्मसार आओ मिलकर वोट दे , लोकतंत्र विजय करे निशाँ अंगूठे की अपने देशहित में भेंट दे |
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फ़रवरी 26, 2012
चुनाव पर्व
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ख़्वाब तेरी किरचियाँ बन आँखों को अब चुभने लगी गम की आँधियाँ इस तरह ख्वाबों के धूल उड़ा गए मंज़िल पास थी रास्ता साफ था दो कदम...
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तू है वक़्त गुज़रा हुआ मुरझाया फूल किताबों में रखा तुझे न याद करूँ एक पल से ज्यादा कि दिल में तू नहीं अब कोई और है तुम से खिला क...
कर्म उनके जांच लो, मंसूबे क्या है जान लो
जवाब देंहटाएंसोचे हित जो जन की उसको वोट देना ठान लो
सही संदेश।
मौसम के अनुकूल..!
एक अच्छी चेतावनी ... वोटरों के लिए /
जवाब देंहटाएंmere bhi blog par aaye
try to write on sensitive issues also !
जवाब देंहटाएंgood stuff :-)
Bahut sundar, ek Jarooree aur saarthak sandesh detee rachna !
जवाब देंहटाएंउम्मीद है अक्ल से काम लेंगे....
जवाब देंहटाएंअच्छी चेतावनी..
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
जवाब देंहटाएंबहुत श्रेष्ठ और सटीक!
जवाब देंहटाएंसटीक समझाईश...
जवाब देंहटाएंumda sandesh
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