प्रिये तुम बस मेरी हो दुनिया से क्या डरना मुझको शाप-शब्दों का परवाह नहीं अब तुम अब नहीं अकेली हो प्रिये तुम अब मेरी हो दिनकर रजनीकर में हम तुम जग में अभिसार का संशय कुछ भी कहने दो लोगो को तुम अब मेरी सनेही हो प्रिये तुम अब मेरी हो अमृत भी भला क्या मोहे अधर-सुधा जो अमृत घोले विषपान भी कर लूं गर कह दो अपने संग जी लेने दो प्रिये तुम अब मेरी हो तुम्हारा स्पर्श संजीवन जैसा रिश्तों का गठबंधन ऐसा अमरप्रेम की इस जीवंत कथा को जग को भी कह लेने दो प्रिये तुम बस मेरी हो |
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जनवरी 12, 2012
प्रिये तुम
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति,बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
तुम्हारा स्पर्श संजीवन जैसा
जवाब देंहटाएंरिश्तों का गठबंधन ऐसा
अमरप्रेम की इस जीवंत कथा को
जग को भी कह लेने दो
प्रिये तुम बस मेरी हो ......दिल को छू हर एक पंक्ति....
क्या विधवा को भी प्रेम का और प्रेमी से विवाह का अधिकार है या नहीं ?
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़ी है तो मन में एक विचार भी आया है और जब वह आ ही गया है तो उसे आपको सौंप देना ही श्रेयस्कर है। अब चाहे आप इसे अपने पास तक रखें या सबके साथ शेयर करें यह आपकी मर्ज़ी है।
हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि क्या विधवा को भी प्रेम का और प्रेमी से विवाह का अधिकार है या नहीं ?
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औरत के सामने सम्मान से जीने का रास्ता मौजूद हो तो भला वह मरना क्यों पसंद करेगी ?
मनु स्मृति के आदेश हैं कि पति के मर जाने पर नारी दूसरे पति का तो नाम भी न ले, उसके विवाह की तो बात ही छोड़ो-
न तु नामापि गृह्णीयत् पत्यौ प्रेते परस्य तु
- मनुस्मृति, 5, 157
हिंदू धर्म के अनुसार केवल इतना ही नहीं कि वह अविवाहिता रहेगी बल्कि उस पर अन्य प्रतिबंध भी हैं। जो जीवित नारी को मुरदा बनाने वाले हैं, यथा - व्यास का कहना है कि यदि विधवा सती न हो तो उसके केश काट देने चाहिए और वह तप कर के अपने शरीर को दुर्बल बना कर रहे-
जीवंती चेत् त्यक्तकेशा तपसा शोषयेद् वपुः
ऋ 2, 53
बौधायन धर्मसूत्र का आदेश है कि विधवा एक साल के लिए नमक तक न खाए और धरती पर सोए-
संवत्संर प्रेतपत्नी...लवणानि वर्जवेदधश्शयीत
-2, 2, 4, 7
वृद्धहारीत स्मृति का कहना है कि विधवा केश संवारना, पान खाना, गंध सेवन, शरीर पर पुष्प लगाना, आभूषण एवं रंगदार वस्त्र पहनना छोड़ दे। वह न तो पीतल कांसे के बरतन में भोजन करे, न दिन में दो बार खाए, न आंख में काजल लगाए। वह सदा सफ़ेद वस्त्र पहने। सदा भगवान की पूजा करे। रात को कुशा घास की चटाई बिछा कर धरती पर सोए। जब तक जीवित रहे, तप करती रहे, मासिक धर्म के दिनों में वह भोजन के बिना रहे-
केशरंजनतांबूलगंधपुष्पादिसेवनं,
भूषणं रंगवस्त्रं च कांस्यपात्रेषु भोजनम्ऋ
द्विवारभोजनं रंगवस्त्रं चाक्ष्णेरंजनं वर्जयेत्सदा शुक्लांबरधरा.
नित्यं संपूजयेद् हरिम् क्षितिशायी भवेद् रात्रौ
कुशोत्तरे तपश्चरणसंयुक्ता यावज्जीवं समाचरेत्
तावत्तिष्ठेन्निराहारा भवेद् यदि रजस्वला
-वृद्धहारीत, 11, 206-210
स्कंदपुराण (काशीखंड, अ. 4) में कहा गया है कि विधवा का सिर मुंडा हुआ हो. वह दिन में एक बार भोजन करे, मास मास भर के उपवास करे. उसे चारपाई पर नहीं सोना चाहिए. उसे मरते समय भी बैलगाड़ी में नहीं बैठना चाहिए. उसे चोली नहीं पहननी चाहिए. उसे वैशाख, कार्तिक और माघ मास में विशेष व्रत रखने चाहिए.
इन पाबंदियों के अतिरिक्त विधवा को तिरस्कार और उपेक्षा की भी पात्र बनाया गया है। स्कंदपुराण के अनुसार विधवा सब से बड़ा अमंगल है। विधवा दर्शन से सफलता हाथ नहीं लगती, कार्य सिद्ध नहीं होता। विधवा के आशीर्वाद को समझदार लोग सांप का विष समझते हैं।
( काशीखंड, 4,55,75 एवं ब्रहमारण्य भाग 50,55 )
ऐसी ही बातें मदनपारिजात ( पृष्ठ 202-203 ), निर्णयसिंधु में भी मिलती हैं।
इन सब पाबंदियों के कारण कोई भी औरत वर्षों तक अपमान और शोषण सहकर मरने के बजाय आग में जलकर मरना पसंद करती थी।
हिंदू धर्म की इन प्रथाओं के कारण जिन की बहू बेटियां जल रही थीं या जलाई जा रही थीं। जब उनके सामने इस्लाम आया तो उन्होंने इसे सहर्ष ही स्वीकार कर लिया।
इस्लाम वह धर्म है जिसमें औरत को विधवा होने के बाद इस तरह की किसी भी पाबंदी का सामना नहीं करना पड़ता बल्कि वह सब लोगों की सहानुभूति और सहयोग की पात्र होती है। ज़कात में विधवा का अधिकार रखा और इस बात की ख़ास हिदायत की कि कोई उनका उत्पीड़न न करने पाए। विधवा को इस्लाम यह अधिकार देता है कि वह अपनी पसंद से और अपनी मर्ज़ी से दोबारा विवाह कर सकती है। इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ख़ुद कई ऐसी विधवा औरतों से निकाह किया जो कि बूढ़ी या अधेड़ थीं और उनमें कुछ तो बहुत कठिनाईयों का मुक़ाबला कर रही थीं।
भारत में भी बहुत से ऋषि-मुनि और महापुरूष हुए हैं। आप उनमें से किसी एक का नाम बताइये जिसने कभी किसी विधवा से विवाह करके उसे समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाया हो ?
कृप्या विचार कीजिए कि विधवाओं के संबंध में हिंदू धर्म की व्यवस्था पालन करने योग्य है या कि इस्लाम की ?
http://kalyugeenarad.blogspot.com/2012/01/blog-post.html
बेहतरीन भाव।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ही...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंअमरप्रेम की इस जीवंत कथा को
जवाब देंहटाएंजग को भी कह लेने दो
बहुत सुन्दर
bahut sundar rachna.
जवाब देंहटाएंMeri bhi rachna dekhen..
तुम्हारा स्पर्श संजीवन जैसा
जवाब देंहटाएंरिश्तों का गठबंधन ऐसा
अमरप्रेम की इस जीवंत कथा को
जग को भी कह लेने दो
प्रिये तुम बस मेरी हो
खूबसूरत....
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंमकरसंक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाये
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्रेम के भावो से ओतप्रोत शानदार रचना.
जवाब देंहटाएंbahut sundar...priye ab tum meri ho...sach hai ab dar kaisa
जवाब देंहटाएंअमृत भी भला क्या मोहे
जवाब देंहटाएंअधर-सुधा जो अमृत घोले
विषपान भी कर लूं गर कह दो
अपने संग जी लेने दो
प्रिये तुम अब मेरी हो
bahut hi utkrisht rachana ....bilkul sangrhneey...badhai ana ji.
Bahut hi sundar expressions hain!
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द और भाव अनुपम है.
प्रस्तुति के लिए आभार जी.
दिनकर रजनीकर में हम तुम
जवाब देंहटाएंजग में अभिसार का संशय
कुछ भी कहने दो लोगो को
तुम अब मेरी सनेही हो
प्रिये तुम अब मेरी हो
बेहद प्रभावशाली लेखनी ....शब्द शब्द कुछ कहता सा है