धरा ने अपने प्रांगन में
निमंत्रण दिया है जन-जन को
त्रिनासन है बिछाया
तृप्त जो करना है
प्रानमन को
नदी ने भी निमंत्रण सुन
समर्पित किया अपने जल को
आकाश भी आ पहुंचे
लेकर साथ पवन देव को
सूर्य और चन्द्रमा ने तो
सुसज्जित किया अपने किरण से
पवन देव ने निमंत्रण स्थल को
शीतल किया अपने बल से
मृदु भाव से पशु-पक्षी ने
अपना स्थान ग्रहण किया
ये मनोरम दृश्य देख
तीनो लोक अभीभूत हुआ
फ़ॉलोअर
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
-
तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
-
कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
मन को झंकृत करे गये आपके भाव।
जवाब देंहटाएं................
अपने ब्लॉग पर 8-10 विजि़टर्स हमेशा ऑनलाइन पाएँ।
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति...!!
जवाब देंहटाएं