फ़ॉलोअर

मई 12, 2010

प्रकाश की ओर



अस्त-व्यस्त ये जीवन क्यों है सुस्त-सुस्त ये चाल है क्यों
पस्त - पस्त सा क्यों है पड़ा तू ?खस्ता - खस्ता सा हाल है क्यों

असरत - कसरत कर के बनाया हृष्ट - पुष्ट सा ये काया
नष्ट न कर इस नियामत को चुस्ती तेरा सबको भाया

क्यों है निराश इस जीवन से निकल अवसाद के घेरे से
मनोकामना पूरी करले ऊबर मन के अँधेरे से

सफलता - असफलता लगा रहता है न कर निराश इस मन को तू
सफलता जिस दिन हाथ लगेगी संघर्ष के दिन न जाना भूल

निराशा में आशा छिपा है सर्वविदित है ये दर्शन
योग्य है तू काबिल है तू है जगजाहिर क्यों तू है खिन्न

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ब्लॉग आर्काइव

widgets.amung.us

flagcounter

free counters

FEEDJIT Live Traffic Feed