निविड़ घन अँधेरे में जल रहा है ध्रुवतारा
रे मेरे मन इन पत्थरों में न होना दिशाहारा
विषादों में डूबकर गुनगुनाना बंद मत कर
अपने जीवन को सफल कर ले तोड़कर मोहकारा
रखना बल जीवन में चिर-आशा हृदय में
शोभायमान इस धरती पर बहे प्यार कि धारा
संसार के इस सुख-दुःख में चलते रहना हँसते हुए
हृदय में सदा भर के रखना उनका सुधा धारा
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