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अप्रैल 29, 2010

निविड़ घन अँधेरे में................


निविड़ घन अँधेरे में जल रहा है ध्रुवतारा 
रे मेरे मन इन पत्थरों में  न होना दिशाहारा 
विषादों में डूबकर गुनगुनाना बंद मत कर 
अपने जीवन को सफल कर ले तोड़कर मोहकारा 
रखना बल जीवन में चिर-आशा हृदय में 
शोभायमान इस धरती पर बहे प्यार कि धारा 
संसार के इस सुख-दुःख में चलते रहना हँसते हुए 
हृदय में सदा भर के रखना उनका सुधा धारा

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