विश्व जब है निद्रा- मग्न गगन है अन्धकार
कौन ही जो मेरे वीणा के तार पर छेड़ा है झंकार
नयनों से नींद लिया हर उठ-बैठूं शयन छोड़कर
आँखे बिछाए प्रतीक्षा करूँ उसे न देख पाऊँ
मन में मचा है हाहाकार
गुन-गुन-गुन-गुन गीत से प्राण है भर गया
न जाने कौन सा विपुल वाणी व्याकुल स्वर से बजाया
कौन सी ये वेदना समझ न आये
अश्रुधारा से भर गया हृदय ये
किसे मैं पहनाओं ये मेरा कंठहार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें