ये कौन अशान्त चंचल तरुण है आया ये किसका वासनांचल उड़-उड़ के छाया
ये अलौकिक नृत्य है किसने किया वन-वनांतर अधीर आनंद से मुखरित हुआ
मेरी वीणा ने ये कौन सा सुर बजाया कि वो चंचल तरुण मन में समाया
इस अम्बर प्रांगन में निस्वर मंजीर गूंज रही है
ये अनसुना सा ताल पर पल्लव पुंज करताली बजा रही है
ये किसके पदचाप सुनाने की है आशा
त्रिन-त्रिन को है अर्पण उस पदचाप की भाषा
ये कौन से वन-गंध से समीरण है बंधनहारा
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