आसमान का रंग है नीला हरी-हरी सी धरती
मटमैला है रंग ज़मीं की पर रंग नहीं है जल की
हर रंग में यह ढल जाती है है यह बात गजब की
नष्ट न करो इस अमृत को संरक्षण कर लो जल की
पीकर घूँट अमृत की जन-जन धन्यवाद दो इश्वर को
बेकार न हो जाये जीवन पानी को सांस समझ लो
फ़ॉलोअर
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
-
तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
-
कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
ye kafi acha likha hai aapne... agar abhi kuch na kiya gaya to aane wale dino mei jaal ki samasya kafi gambhir ho jayegi!!
जवाब देंहटाएं