दिसंबर 03, 2011

तुम्हारी साँसों की..


तुम्हारी साँसों की खुशबू से
महका मधुमास इस आँगन में
पहले कभी न महका था यूं
हवा इस गीले सावन में

फूलों में भी ये मादकता
दिखी न कभी इस बगिया में
मन भी कभी न भटका ऐसे
फूलों वाली मौसम में

सूनी सी इस जीवन में जो
था रीतापन खारापन
मौसम परिवर्तन ने जैसे
अनायास भर दिया यौवन

अरुणोदय चंद्रोदय अब तो
भाता  है खूब इस मन को
आसमान की नीलिमा भी
रंगीन लगता है अब तो

संध्या की इस लालिमा से
भर दूं मांग ...मेरी हो तुम
शायद हवा बहती हुई
ये कथा कह दे सुन लेना तुम

16 टिप्‍पणियां:

  1. संध्या की इस लालिमा से
    भर दूं मांग ...मेरी हो तुम
    शायद हवा बहती हुई
    ये कथा कह दे सुन लेना तुम...बहुत सुंदर मन के भाव ...
    प्रभावित करती रचना ...

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  2. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  3. बढिया प्रस्‍तुति।
    हर बार की तरह इस बार भी गजब की तस्‍वीर।

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  4. सुन्दर प्रस्तुति ||

    बधाई ||

    http://terahsatrah.blogspot.com

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  5. वाह.....क्या शब्द चयन है .......बहुत खूब ...

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  6. बेहद सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति |
    'फूलों में भी यह मादकता --------मौसम में '
    सुन्दर रचना के लिए बधाई |
    आशा

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  7. कविता का प्रवाह, लय और भाव आकर्षित करता है।

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  8. मन के भाव को शब्दों में पिरोया है ...बहुत खूब ...

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