दिसंबर 08, 2011

ईमान क्यों है गड़बड़ाया


ईमान क्यों है गड़बड़ाया
 तेरी सूरत देखकर
किताब में रक्खे  फूल भी
ताजगी दे गयी महककर


दिल-ए-दास्ताँ जो कभी
बंद थी किताब में
शोखियाँ और बांकपन सब
छुप गया था नकाब में


फिर क्यों  ले जाए हमें
बहारों के शबाब में
सुर फिर से क्यों बजे
 सुरीली रबाब में


क्यों फिर से ज़िन्दगी के
कैनवस में रंग दिख गये 
क्यों फिर से सूखे  गुलाब
किताबों के बीच  महक गये 


ईमान फिर से गड़बड़ाया
तेरी सूरत देखकर
फिर से क्यों सूखे फूल
ताजगी दे गयी महककर





16 टिप्‍पणियां:

  1. भाव तो अच्छे हैं... किन्तु-किन्तु...

    कई बार एक ही बात लिखी गयी है, लिखने से रोक नही प रहा... अन्यथा ना लें...

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  2. Hi...

    Priyatam tere saath hi rahta...
    Rahta hai tere khwabon main....
    Uske hone se hi khush ho...
    Mahke phool kitabon main....

    Sundar kavita...mahakti hui...

    Deepak..

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  3. ईमान फिर से गड़बड़ाया
    तेरी सूरत देखकर
    फिर से क्यों सूखे फूल
    ताजगी दे गयी महककर
    गजब के ज
    ज्‍बात।

    सुंदर रचना।

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  4. प्यारी कविता है ,भाषा सरल और सहज है

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  5. क्यों फिर से ज़िन्दगी के
    कैनवस में रंग दिख गये
    क्यों फिर से सूखे गुलाब
    किताबों के बीच महक गये

    खूबसूरत एहसास...!!

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  6. फिर क्यों ले जाए हमें
    बहारों के शबाब में
    सुर फिर से क्यों बजे
    सुरीली रबाब में

    वाह

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  7. शुक्रिया आपका
    एक नया
    अहसास दिया आपने
    जहन से पर्दा उठाया
    आपने
    ज़िन्दगी जीने का
    मकसद समझाया
    आपने
    फिर से हँसने का
    रास्ता दिखाया
    आपने
    ग़मों में डूबे रहने का
    सबब बताया
    आपने
    गिर कर उठने का
    तरीका सिखाया
    आपने
    शुक्रिया आपका
    सूखे लबों को फिर से
    थिरकाया आपने
    निरंतर रोते हुए को
    हँसाया आपने

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  8. क्यों फिर से ज़िन्दगी के
    कैनवस में रंग दिख गये
    क्यों फिर से सूखे गुलाब
    किताबों के बीच महक गये

    badhai bahut hi sundar pravishti.... abhar.

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  9. ईमान फिर से गड़बड़ाया
    तेरी सूरत देखकर
    फिर से क्यों सूखे फूल
    ताजगी दे गयी महककर .very nice

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