तुम्हारी साँसों की खुशबू से महका मधुमास इस आँगन में पहले कभी न महका था यूं हवा इस गीले सावन में फूलों में भी ये मादकता दिखी न कभी इस बगिया में मन भी कभी न भटका ऐसे फूलों वाली मौसम में सूनी सी इस जीवन में जो था रीतापन खारापन मौसम परिवर्तन ने जैसे अनायास भर दिया यौवन अरुणोदय चंद्रोदय अब तो भाता है खूब इस मन को आसमान की नीलिमा भी रंगीन लगता है अब तो संध्या की इस लालिमा से भर दूं मांग ...मेरी हो तुम शायद हवा बहती हुई ये कथा कह दे सुन लेना तुम |
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दिसंबर 03, 2011
तुम्हारी साँसों की..
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संध्या की इस लालिमा से
जवाब देंहटाएंभर दूं मांग ...मेरी हो तुम
शायद हवा बहती हुई
ये कथा कह दे सुन लेना तुम...बहुत सुंदर मन के भाव ...
प्रभावित करती रचना ...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहर बार की तरह इस बार भी गजब की तस्वीर।
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत , बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह! खूबसूरत नजारे।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना....बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
http://terahsatrah.blogspot.com
क्या बात है , बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंवाह.....क्या शब्द चयन है .......बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएं'फूलों में भी यह मादकता --------मौसम में '
सुन्दर रचना के लिए बधाई |
आशा
bahut sundar prastuti .
जवाब देंहटाएंकविता का प्रवाह, लय और भाव आकर्षित करता है।
जवाब देंहटाएंमन के भाव को शब्दों में पिरोया है ...बहुत खूब ...
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