Khwab nahin hai unche mahlon ka
Jahan band darvaje aur khidkiyan ho paband
mujhe chahie aashiyana un diwaron ka
Jisme khuli Ho khidkiyan aur bastaa ho Anand
ख्वाब नहीं है मुझे ऊंचे महलों का
जहां बंद दरवाजा और खिड़कियां हो पाबंद
मुझे चाहिए आशियाना उन दीवारों का
जिसमें खुली हो खिड़कियां और बसता हो आनंद
© अनामिका
जी आभार
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंजी बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत जरुरी हो गयी है एक "खुली खिड़की "आजकल , सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर वंदन आदरणीय !
जी आभार
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जी बहुत शुक्रिया
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