सारे किस्से बयाँ न हो पाता कभी
दिल के कब्र में हजार किस्से दफ़्न हैं
इतने करीब भी न थे कि बुला पाऊँ तुम्हें
इतने दूर भी न थे कि भुला पाऊँ तुम्हें
पुराने जख्मों से मिल गयी वाहवाही इतनी
कि अब उसे नये जख्मों की तलाश है
मेरी चाहत है मैं रातों को रोया न करूं
या रब मेरी इस चाहत को तो पूरा कर दे
कई नाम मौजूद है इस दिले गुलिस्तान में
धड़क जाता है दिल ये बस तुम्हारे नाम से
मैं कुछ इस तरह ग़म की आदत से तरबतर
कि ग़म होगा गर ख़ुशी आये मिलने मुझसे
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