हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर
अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी
टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर
अब वफ़ाओं के मुस्कुराने में देर न लगेगी
वो आलम वो लम्हा जो गवाह थे फ़साने के
उन लम्हो को बीतने में ज़रा भी देर न लगेगी
वो पुराना रास्ता गुलों से जो लबालब था
हवाला ए खिज़ा में अब उसे देर न लगेगी
जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआसमां को न बनाइये ज़मीं
जवाब देंहटाएंवरना बंटने में उसे देर न लगेगी ।
यूँ ही एक ख़्याल ....
उम्दा रचना ।
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंअहसास और अनुभूति में पगी सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना, अभिनंदन ।
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