जुलाई 22, 2017

दरवाज़ों की भी ....



हर दर के दरवाज़ों की भी अपनी कहानी होती है
कहीं बूढ़े सिसकते मिलते है और कहीँ जवानी रोती है

आंगन-खिड़की है फिर भी दरवाज़ों का अपना खम है
कोई हाथ पसारे बाहर है कोई बाँह फैलाये अंदर है

हर दरवाजे के अंदर जाने कितनी जानें बसतीं हैं
बच्चे बूढ़े और जवानों की खूब रवानी रहती  है

सूरते हाल पूछो उनसे जिसे दर दर ठोकरें ही है मिले
दरवाजे बने हैं हर घर में पर 'खुले' नसीबांओं  को मिले 

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