जून 06, 2014

इशकनामा





जिस्मों से परे दो रूहों को-
मिलाता है इश्क़ 
जीते है साथ और जीने की ख़ुशी -
दिलाता है इश्क़ 

प्रेम दरिया में डूबकर भी प्यासा 

रह जाता है इश्क़ 
समंदर सी गहराई औ नदी सा-
मीठा पानी है इश्क़ 

बादल गरजे तो बूँद बन जिस्म 

भिगोती है इश्क़ 
प्रेम-ज्वार परवान तो चढ़े पर भाटा
 न आने दे इश्क़ 

अनहद-नाद-साज़ प्रेम-गह्वर से 

प्रतिध्वनित है इश्क़ 
मंदिरों में घंटी सी बजे और मस्जिदों में
 अजान है इश्क़ 

इश्क़ इंसान से हो या वतन से मिटने को 

तैयार रहता  है इश्क़ 
ख़ुश्बुओं से ग़र पहचान होती गुलाब की 
शोख रवानी है इश्क़ 

ख्यालों में सवालों में.....जवाब ढूंढ

 लाती है इश्क़ 
  आसमान रंग बदले चाहे पड़ता नहीं 
फीका रंग-ए-इश्क़ 

सिमट जायेगी ये दुनिया गर मिट जाए 

नामों निशां-ए-इश्क़ 
बीज जो पनपते ही रंग दे दुनिया वो
 खूबसूरत तस्वीर है इश्क़ 











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