झरनों सा गीत गाता ये मन
सरिता की कलकल मधुगान
सृष्टि है.... अनादि-अनंत
भावनाओं से भरा है ये प्राण
वरदान है कण-कण में छुपा
दुःख-वेदना से जग है भरा
पर स्वर्ण जीवन से भरा है
नदी-सागर और ये धरा
गूंजता स्वर नील-नभ में
मोरनी … नाचे वन में
गा रहा है गीत ये मन
देख प्रकृति की ये छटा
सोंधी महक में है एक नशा
चन्द्रमा का प्रेम है निशा
स्वप्नमय है ये वसुंधरा
दिन उजला रात है घना
देख श्याम घन गगन में
ह्रदय-स्पंदन.... बढे रे
नृत्य करे मन मत्त क्षण में
सुप्त नाड़ी भी जगे रे
कल-कल सरित गुंजायमान
नद नदी सागर प्रवाहमान
पुष्प सज्जित है उपवन
और धरित्री चलायमान
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