मंजिल ढूँढती हूँ
रास्तों के सफ़र में
ये बाज़ार की भीड़ है
मंजिल दिखेगी कहाँ ।।
तन्हाई में भी मैं
चल प ड़ती हूँ गर
अँधेरी इस दुनिया में
रौशनी है कहाँ ।।
जहां भी जाती हूँ
इस अंध जग में
परछाईं भी अपनी
पराई सी लगे ।।
निशाँ ढूँढती हूँ
मंजिल की मैं
रेतीली ज़मीन है
मिलेगी कहाँ ।।
आँधियों से लड़ने की
आदत तो हो गयी
पर कदम अब भी -
ढूँढती है तेरे निशाँ ।।
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आँधियों से लड़ने की
जवाब देंहटाएंआदत तो हो गयी
पर कदम अब भी -
ढूँढती है तेरे निशाँ ।।
श्रेष्ठ कविता.........
और ये है...............
सर्वश्रेष्ठ पंक्तियाँ......
तन्हाई में भी मैं
जवाब देंहटाएंचल प ड़ती हूँ गर
अँधेरी इस दुनिया में
रौशनी है कहाँ ।।
hai raushani.....
yahin hai....
bas yahan hi hai raushani.....!
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति.....
बहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंप्रेरक!
जवाब देंहटाएंVery nice post.....
जवाब देंहटाएंAabhar!
उदासी का गहरा एहसास लिए ... पर इस निराशा में भी आशा की किरण है ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव संयोजन से सजी अनुपम रचना।
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने
जवाब देंहटाएंकल 30/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
'' एक समय जो गुज़र जाने को है ''
बेहद भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंआँधियों से लड़ने की
आदत तो हो गयी
पर कदम अब भी -
ढूँढती है तेरे निशाँ ।।
शुभकामनाएँ.
sundar shbdo mein apni baat kahi hai....umda..
जवाब देंहटाएंअंबर में उड़ता फिरे, मनवा ये बिन पाँख।
जवाब देंहटाएंमंजिल नजरों में रहे, खुली रहे बस आँख॥
सुंदर रचना....
सादर।
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर कविता ।
जवाब देंहटाएंनिशाँ ढूँढती हूँ
जवाब देंहटाएंमंजिल की मैं
रेतीली ज़मीन है
मिलेगी कहाँ,,,,,,लाजबाब पंक्तियाँ ,,,,,,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन कविता ,,,,,
समर्थक बन गया हूँ,,आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,,,,
RESENT POST ,,,, फुहार....: प्यार हो गया है ,,,,,,
bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंके बारे में महान पोस्ट "मंजिल ढूँढती हूँ ....."
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