मार्च 13, 2012

जिंदगीनामा



कई तहों में  ज़िन्दगी सिमटती चली जाती है 
जीवन ये ख़ामोशी से सलवटों में समां जाती है 
कल और आज के बीच का बंटवारा हो न सका 
कई टुकडो में ज़िन्दगी को खुरचती  चली जाती है 


तनहा गुज़र-बसर करना है इक नशा जीवन का 
फंदों के अक्स से खेलना है इक नशा प्रीतम का 
टुकड़ों में बँटी ज़िन्दगी को बुनते चले जाते है 
दरख्तों को आंसुओ से भरते चले जाते है 


मद्धिम सी रौशनी है तारो का जमघट है नहीं अब 
चाँद भी छोड़ चूका साथ ...उषा का स्वागत है अब 
हर रात चाँद और मै..... रिश्ते बुनते जाते है 
ज़िन्दगी के तहों से सलवटे हटाते जाते है 







16 टिप्‍पणियां:

  1. मद्धिम सी रौशनी है तारो का जमघट है नहीं अब
    चाँद भी छोड़ चूका साथ ...उषा का स्वागत है अब
    हर रात चाँद और मै..... रिश्ते बुनते जाते है
    ज़िन्दगी के तहों से सलवटे हटाते जाते है
    एक मैं ही जागू ,सारा जग सोये ,
    हाय जिया रोये ....सुन्दर रचना ....

    जवाब देंहटाएं
  2. आना जी सुंदर अभिव्यक्ति और बहुत सुंदर ब्लॉग ...आज ही ज्वाइन कर लिया ...!!

    जवाब देंहटाएं
  3. कई टुकडो में ज़िन्दगी को खुरचती चली जाती है....

    सुन्दर अभिव्यक्ति!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. टुकड़ों में बँटी ज़िन्दगी को बुनते चले जाते है
    दरख्तों को आंसुओ से भरते चले जाते है,,,,
    वाह !! क्या बात है बहुत ही सुंदर भाव संयोजन से सजी भावपूर्ण अभिव्यक्ति....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ... गहरी नज़्म ...गहरे एहसास लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  6. संवेदना और कोमलतम अह्सासों से भरपूर बहुत ही बेहतरीन रचना ! बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  7. टुकड़ों में बँटी ज़िन्दगी को बुनते चले जाते है
    दरख्तों को आंसुओ से भरते चले जाते है!
    प्यारी सी नज़्म !

    जवाब देंहटाएं
  8. jindgi ke pahluo ko chhuti hui sundar abhi vyakti

    जवाब देंहटाएं