मुझमे क्या कुछ बाकी है जीवन ये एकाकी है पवन नदी औ ' निर्जन वन ये मुझको पास बुलाती है मृदु-मृदु ये लहरे बहती मंद-मंद सी पवन ये कहती विचलित होना न रे ! नर तू जीवन अवश्यम्भावी है क्या मुझमे कुछ बाकी है ? व्यर्थ ये जीवन कहूं न कैसे ? व्यर्थ ये साँसे तजूं न क्यों मै ? किसी के मन को भाया मै नहीं उर में भरा ये रूदन है फिर भी मुझमे कुछ बाकी है ! आशाओं को सींचूं फिर भी भाग्य - पुष्प को खिलाऊँ फिर भी काल-विजय का सपना देखूं जीवन को जीवंत करना है अरे! जीवन में सब कुछ बाकी है । |
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मृदु-मृदु ये लहरे बहती
जवाब देंहटाएंमंद-मंद सी पवन ये कहती
विचलित होना न रे ! नर तू
जीवन अवश्यम्भावी है
क्या मुझमे कुछ बाकी है ?
सुन्दर !
आशाओं को सींचूं फिर भी
जवाब देंहटाएंभाग्य - पुष्प को खिलाऊँ फिर भी
काल-विजय का सपना देखूं
जीवन को जीवंत करना है
अरे! जीवन में सब कुछ बाकी है ।उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आशावादी रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रेरणा देती ek अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंजब तक साँसें है तब तक कुछ ना कुछ बाकी रहता ही है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव...
मृदु-मृदु ये लहरे बहती
जवाब देंहटाएंमंद-मंद सी पवन ये कहती
विचलित होना न रे ! नर तू
जीवन अवश्यम्भावी है
क्या मुझमे कुछ बाकी है ?
आशा की तरंगें संचारित करता सुंदर गीत।
वाह बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंवाह!!
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बेहतरीन रचना ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गीत...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेश देती भावपूर्ण प्रस्तुति....निःसंदेह सराहनीय.....
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
आशा है तो सब कुछ है।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता।
superb
जवाब देंहटाएं-Nice blog sharing information
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