फ़रवरी 12, 2012

मुझमे क्या कुछ....



मुझमे क्या कुछ बाकी है
जीवन ये एकाकी है 
पवन नदी औ ' निर्जन वन ये 
मुझको पास बुलाती है 


मृदु-मृदु ये लहरे बहती 
मंद-मंद सी पवन ये कहती 
विचलित होना न रे ! नर तू 
जीवन अवश्यम्भावी है 
क्या मुझमे कुछ बाकी है ?


व्यर्थ ये जीवन कहूं न कैसे ?
व्यर्थ ये साँसे तजूं न क्यों मै ?
किसी के मन को भाया मै नहीं
उर में भरा ये रूदन है 
फिर भी मुझमे कुछ बाकी है !


आशाओं को सींचूं फिर भी 
भाग्य - पुष्प को खिलाऊँ फिर भी 
काल-विजय का सपना देखूं 
जीवन को जीवंत करना है 
अरे! जीवन में सब कुछ बाकी है ।

16 टिप्‍पणियां:

  1. मृदु-मृदु ये लहरे बहती
    मंद-मंद सी पवन ये कहती
    विचलित होना न रे ! नर तू
    जीवन अवश्यम्भावी है
    क्या मुझमे कुछ बाकी है ?

    सुन्दर !

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  2. आशाओं को सींचूं फिर भी
    भाग्य - पुष्प को खिलाऊँ फिर भी
    काल-विजय का सपना देखूं
    जीवन को जीवंत करना है
    अरे! जीवन में सब कुछ बाकी है ।उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आशावादी रचना

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  4. प्रेरणा देती ek अच्छी कविता

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  5. जब तक साँसें है तब तक कुछ ना कुछ बाकी रहता ही है..

    सुन्दर भाव...

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  6. मृदु-मृदु ये लहरे बहती
    मंद-मंद सी पवन ये कहती
    विचलित होना न रे ! नर तू
    जीवन अवश्यम्भावी है
    क्या मुझमे कुछ बाकी है ?

    आशा की तरंगें संचारित करता सुंदर गीत।

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  7. वाह बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।

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  8. बेहतरीन गीत...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  9. सुन्दर संदेश देती भावपूर्ण प्रस्तुति....निःसंदेह सराहनीय.....
    कृपया इसे भी पढ़े-
    नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)

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