नूतन मनहरण किरण से त्रिभुवन को जगा दो निहारूं तुम्हारे आँखों पर आये अपार करुणा को नमन है निखिल चितचारिणी धरित्री को जो नित्य नृत्य करे -- नुपुर की ध्वनि को जगा दो तुम्हे पूजूं हे देव-देवी कृपा दृष्टि रख दो रागिनी की ध्वनी बजे आकाश नाद से भर दो इस मन को निवेदित करूं मै तुम्हारे चरणों पर प्रेम-रूप से भरी धरनी की पूजा मै कर लूं |
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बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसटीक व सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना के शब्द और भाव अप्रतिम हैं...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
वन्दनामय सुन्दर रचना, शब्द बखूबी इस्तेमाल किये है !
जवाब देंहटाएंनूतन मनहरण किरण से त्रिभुवन को जगा दो
जवाब देंहटाएंनिहारूं तुम्हारे आँखों पर आये अपार करुणा को
अति मनोहारिणी रचना....
प्रेममयी...
करुणामयी.....
मंत्रमुग्ध कर देनेवाली प्रस्तुति शानदार है |अब पढ़िए दिल की जज्बात यहाँ पधारें
जवाब देंहटाएंhttp://www.akashsingh307.blogspot.com
सुन्दर..अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ूबसूरत और मनमोहक रचना! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव संयोजन....http://mhare-anubhav.blogspot.com/ समय मिले कभी तो आयेगा मेरी इस पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत
जवाब देंहटाएंऔर कोमल भावो की अभिवयक्ति.....
गहरे भाव लिए सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंशब्द बहुत सुन्दर हैं..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
sunder shabd aur bhav se saji ati sunder kavita.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एवं सराहनीय रचना के लिये बधाई.......
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी पढ़े-
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